भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काई तोड़ने का मंत्र / माया मृग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तुम कहते हो
तो मान लेता हूँ कि
वक्त तुम्हारे लिए
बहती नदी नहीं रहा,
ठहरकर कच्चें तटों वाला
पोखर हो गया है।
और तुम किनारे बैठे,
विवश, लगातार
इसे गंदलाते देख रहे हो।
मित्र !
बेशक तुम्हारे पास
गैंती-कस्सी नहीं।
तट को तोड़,
धारा बहा ले जाने का
रास्ता भी नहीं ,
पर अरे बेवकूफ !
किनारे से एक छोटा सा
कंकर उठाकर तो फेंक दो।
गंदलाते पानी की
काई तोड़ने का मंत्र
कोई तुम्हें सिखाने नहीं आयेगा।