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काली चमड़ी वाले कुली, कैसा है रे? / समीर ताँती

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 काली चमड़ी वाले कुली, कैसा है रे?
चाय की पेटी में कलेजा तेरा
चाय गोदाम में हड्डियाँ।
किस देवता को पूजता है तू?

तेरी क़िस्मत में चाँदनी नहीं है,
क्यों बजाता है बाँसुरी, किसलिए?
किस युग का भूला हुआ इतिहास है तू?

तुझे सोने को मना किया था हमने,
भगवान ने मना किया था खाने को,
पता है न, तेरा जो होना है उसका नाम नरक है?

काली चमड़ी वाले कुली, कैसा है रे?
सिर झुका रात को सलाम दिया ठीक ही,
दिन के उजाले में बोलना मना है।

पैदा न होना, आग बनकर न फैलना,
जुर्माने में देना होगा बच्चे और बीवी को।

समीर ताँती की कविता : 'क’ला चाम्रार कुली, कि खबर?' का अनुवाद
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल असमिया से अनूदित