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काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता / मोहसिन नक़वी

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काश बनाने वाले ने मुझे किताब बनाया होता
वो पढ़ते पढ़ते सो जाती मुझे सीने से लगाया होता

मैं उसके गम में रोता और रोता ही जाता
उस ने चुपके से मुझे सीने से लगाया होता

उस को दास्तान सुना सुना के थक सा गया
काश उस ने भी मुझे हाल-ए-दिल सुनाया होता

मैं उस का नाम लेता और सुबहो शाम लेता था
है अफ़सोस उस ने मुझे एक बार बुलाया होता

मैं उस की खातिर तड़पता रहा शाम ओ सहर 'मोहसिन'
अरमान न होता गर उसने एक आंसू ही बहाया होता