भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किसानों को ज़मींदारों के / प्रेमचंद सहजवाला
Kavita Kosh से
किसानों को ज़मींदारों के जब ऐलां बता देंगे,
वो अपनी जान दे कर आप के कर्ज़े चुका देंगे.
परिंदे सब तुम्हारे क़ैदखाने के कफ़स में हैं,
मगर इक दिन ये तूफाँ बन के ज़िन्दाँ को उड़ा देंगे.
तुम्हारी हर हक़ीक़त राज़ के परदे में पिन्हाँ है,
मगर कुछ सरफिरे आ कर कभी पर्दा उठा देंगे.
गिरफ्तः-लब हैं हम गरचे तुम्हारे खौफ़ से अब तक,
ज़बां खुलने पे इक नग्मा बगावत का भी गा देंगे.
सियासतदान नावाकिफ़ हैं सब इखलाक़ से लेकिन,
कभी नेहरु कभी गाँधी सी तक़रीरें सुना देंगे
कोई मुजरिम शहर में कल ज़मानत पर नज़र आया,
वो इक आला घराने का था उस को क्या सज़ा देंगे!