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क्यूँ भटकता है जा—ब—जा बाबा / सुरेश चन्द्र शौक़

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क्यूँ भटकता है जा—ब—जा बाबा
अपने दिल में दिया जगा बाबा।

इस नगर में सभी सवाली हैं
दे रहा है किसे सदा<ref>आवाज़</ref>बाबा।

मोह—माया ने डस लिया है मुझे
कोई मंतर, कोई दवा बाबा।

बंद हैं दिल के सारे दरवाज़े
किस तरह आएगी हवा बाबा।

क्यूँ ख़ुदाई से बेनियाज़<ref>निःस्पृह</ref> है वो
है ख़ुदाई का गर ख़ुदा बाबा।

जीते—जी दिल को चैन मिल जाए
यह न होगा न यह हुआ बाबा।

जोग लेने से कुछ नहीं हासिल
दिल न जब तक हो जोगिया बाबा।

क्या ख़बर किसके दर से क्या मिल जाए
तू अलख तो ज़रा जगा बाबा।

छोड़ सब फ़ल्सफ़े<ref>दर्शन,फिलॉसफी</ref> , रमा धूनी
भर चिलम और दमलगा बाबा।

अब हमारा इलाज नामुम्किन
क्या दवा और क्या दुआ बाबा।

दुश्मने—जाँ सही वफ़ा ऐ ‘शौक़’
इससे मुँह मोड़ लूँ मैं ना बाबा।

शब्दार्थ
<references/>