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खपने का सुख / भरत ओला
Kavita Kosh से
उपेक्षाओं के
अनगिनत
थपेड़ों के बाद
गिरता है
जब कभी खंडहर से
कोई लेवड़
उसे
सुख लूटकर
जा चुके मुसाफिर
अक्सर
याद आ जाते हैं