भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़त / मनु भारद्वाज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्यार भरा ख़त मुझको लिखकर
दे जाना चुपके से हँसकर

कैसे काटी रातें तुमने
किन किस-किससे बातें तुमने

हिज्र का सारा आलम लिखना
बेशक लफ़्ज़ों में कम लिखना

चेहरा था सपनों में किसका
और ज़िक्र अपनों में किसका

सुनता हूँ गुमसुम रहती हो
तन्हाई के ग़म सहती हो

इक दूजे से गीले करेंगे
कब कैसे और कहाँ मिलेंगे

प्यार भरा ख़त मुझको लिखकर
दे जाना चुपके से हँसकर