भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ुशी की बात / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
इससे अधिक खुशी की बात
और क्या हो सकती है
कि इस वक्त भी
कौए को मिल जाता है
भरपेट भोजन
बिन पगार के
पहरेदारी करने से
नहीं चूकता कुत्ता
और हमारे यहाँ
विनम्र लोग
अभी भी बाँट कर खा रहे हैं तम्बाकू
कि धूप-चाँदनी
हवा और पानी ने
निर्मम लोगों के प्रति
तनिक भी नहीं बदला है व्यवहार
इससे अधिक खुशी की बात
और क्या हो सकती है
कि अभी भी गर्म है आँच
और बर्फ़ अभी भी है ठंडी।