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ख़्वाब जब टूट के बिखराव में आ जाते हैं / राज़िक़ अंसारी

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ख़्वाब जब टूट के बिखराव में आ जाते हैं
दुश्मनों की तरह बर्ताव में आ जाते हैं

तूने भी वादा ख़िलाफ़ी की क़सम खाई है
हम भी हर बार तेरे दाव में आ जाते हैं

शाम होते ही तेरे साथ गुज़ारे लम्हात
ताज़गी ले के मेरे घाव में आ जाते हैं

तू कभी मोल हमारा नहीं दे पाएगा
ले तेरे पास तेरे भाव में आ जाते हैं

मुझको मालूम है रुमाल बांथ के मुंह पर
कुछ मेरे दोस्त भी पथराव में आ जाते हैं