भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खूब बनी तेरी अँखिया, हाँ रे बने आज की रतिया / मगही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

खूब बनी तेरी अँखिया, हाँ रे बने आज की रतिया।
खूब बना तेरा सेहरा<ref>फूलों या गोटे आदि की लड़ियाँ, जो दुलहे और दुलहन के सिर पर बाँधी जाती है और मुँह पर लटकती रहती हैं; वह गाना, जो सेहरा बाँधने के समय गाया जाता है</ref> हाँ रे बने आज की रतिया।
लरिया<ref>लड़ियाँ, एक सीध में गुँथी, लगी हुई किसी चीज की माला</ref> लगाएँ सब सखियाँ, हाँ रे बने आज की रतिया॥1॥
खूब बनी तेरी अँखिया, लाल बने आज की रतिया।
खूब सजा तेरा जोड़ा<ref>दुलहे को पहनाया जाने वाला कपड़ा, जिसका नीचे का भाग घाँघरेदार और ऊपर की काट बगलबंदी-सी होती है</ref> हाँ रे बने आज की रतिया।
सनदल<ref>चंदन</ref> लगाएँ सब सखियाँ, हाँ रे बने आज की रतिया॥2॥
खूब बनी तेरी अँखियाँ, हाँ रे बने आज की रतिया।
खूब सजा तेरा बीड़ा<ref>पान की गिलौरी</ref> हाँ रे बने आज की रतिया।
सुरखी<ref>लाली</ref> लगाएँ सब सखियाँ, लाल बने आज की रतिया॥3॥
खूब बनी तेरी लाड़ो, हाँ रे बने आज की रतिया।
घूँघट लगाएँ सब सखियाँ, लाल बने आज की रतिया।
खूब बनी तेरी अँखियाँ, हाँ रे बने आज की रतिया॥4॥

शब्दार्थ
<references/>