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गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास / सुरेश सलिल

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गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास
कट रहे ऐसे ही देश के दिवस मास
 
गाते थे कभी हम
" अभी लड़ाई जारी,सही लड़ाई जारी"
किन्तु आज बने हनुमान हम
कन्धे पर विराजमान
  महाप्रभु सैम और मगनबिहारी

खिले एक एक कर सारे विश्वास
  बन नहीं पाई अमीरों की चौपाल
" किसानों की पाठशाला"
 बहुजन "एक पाठ पढ़ेंगे" भला कैसे
 खोल नहीं पाए हम "अन्धेरे का ताला"
कौड़ियों के भाव आज नीलाम हो रही
मेरी, तुम्हारी और होरी की हर साँस

नावें वहाँ तक पर हैं औंधी पड़ी हुई
प्रश्न है कि आखिर फिर नदियाँ डूबीं कहाँ ?
प्रश्न हैं अनन्त और प्रश्नाकुल हर धड़कन
उत्तर दे कौन? हम भटक रहे यहाँ-वहाँ

भाषा का नियन्ता रिमोट कण्ट्रोल बना
दुबके उधर फुटपाथों पर हैं प्रत्यय-समास