गाँव से आते हैं जो दो चार दाने शह्र में
उन के दम पर हैं ये सारे ताने बाने शह्र में
गाँव के सुनसान घर में एक तन्हा बूढ़ी माँ
भेजती रहती दुआओं के खज़ाने शह्र में
छोटे-छोटे लोगों के हैं गाँव में आंगन बड़े
हैं बड़े लोगों के छोटे आशियाने शह्र में
गाँव के कच्चे घरों में छोड़ कर सब्रों-सुकूँ
आ गए हम देखिये रोटी कमाने शह्र में
गाँव के शाम-ओ-सहर टांगे हैं इक दीवार पर
बस यही दो चार हैं मंज़र सुहाने शह्र में