गाछ सिनूरिया / जटाधर दुबे
गाछ सिनूरिया कैन्हेॅ बेचल्हैं
ऊ गाछी से प्राण माय केॅ जुड़लोॅ छेलै
कोन जुड़ाव के सौदा करल्हैं!
गाछ सिनूरिया कैन्हेॅ बेचल्हैं।
कŸोॅ मोटो धड़ तेॅ छेलै
कŸोॅ पीढ़ी देखी लेतलै,
सभ्भे दिशा में फैली-फैली
डाली आरो भरलोॅ जैतलै।
भरलोॅ गाछ जे मंज़र आवै,
होय मदमस्त बगीचा नाचै
देखी देखी माय जे गावै,
वहे गीत केॅ आय बिसरल्हैं
गाछ सिनूरिया कैन्हे बेचल्हैं?
चैतो-बैशाखो के अंधड़ चलथ्हैं
बेचैनी ओकरा बढ़ि जैतै,
कŸोॅ आम आय गिरी जैते
सोचि सोचि केॅ मन घबरैते।
दौड़ें रे नुनुआ चल्लेॅ भागें
झोरा लैकेॅ मायो दौड़तै,
गाछी साथ-साथ यादो के,
हौ गतिमान मूरति भी भूलल्हैं
गाछ सिनूरिया कैन्हे बेचल्हैं?
भरलोॅ भरलोॅ बाल्टी लैकेॅ,
पाकलोॅ आम
तहूँ ते चोभलैं,
मांयें तेॅ दू चारे चखलै
बाकी सब घरवैयें खैल्हैं।
घोॅर बगीचा करते करते
भोर रात में कखनी बदलै,
माय यहाँ छै
माय वहाँ छै
माय कहाँ-कहाँ नै छै
माय से भरलोॅ संसार छै
गाछ-बिरिछ तांय
हुनकोॅ महिमा अपरमपार छै
खोजै के आनंद बिसरल्हैं
गाछ सिनूरिया कैन्हें बेचल्हैं?