भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाल / हरिऔध

Kavita Kosh से
(गाल से पुनर्निर्देशित)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह लुनाई धूल में तेरी मिले।
दूसरों पर जो बिपद ढाती रहे।
गाल तेरी वह गोराई जाय जल।
जो बलायें और पर लाती रहे।

तो गई धूल में लुनाई मिल।
औ हुआ सब सुडौलपन सपना।
पीक से बार बार भर भर कर।
गाल जब तू उगालदान बना।

लाल होंगे सुख मिले खीजे मले।
वे पड़े पीले डरे औ दुख सहे।
रंग बदलने की उन्हें है लत लगी।
गाल होते लाल पीले ही रहे।

हैं उन्हें कुछ समझ रसिक लेते।
पर सके सब न उलझनों को सह।
है बड़ा गोलमाल हो जाता।
गाल मत गोलमोल बातें कह।

है निराला न आँख के तिल सा।
और उसमें सका सनेह न मिल।
पा उसे गाल खिल गया तू क्या।
दिल दुखा देख देख तेरा तिल।

आब में क्यों न आइने से हों।
क्यों न हों कांच से बहुत सुथरे।
पर अगर है गरूर तो क्या है।
गाल निखरे खरे भरे उभरे।

पीसने के लिए किसी दिल को।
तू अगर बन गया कभी पत्थर।
तो समझ लाख बार लानत है।
गाल तेरी मुलायमीयत पर।