गीत हमारे होंगे लेकिन / प्रभात पटेल पथिक
गीत हमारे होंगे लेकिन,
शब्द-शब्द तुम गुंजित होंगे!
इतने दिन का साथ उभय का,
क्षण-क्षण था प्रतिरूप प्रणय का।
नित अणु-संदेशों की माला।
साझा करते चित्रित प्याला।
नील-बिंदु जब देखें लोचन।
हर्षोदधि हो जाता था मन।
किन्तु तुम्हारी सुधियों के
अब चित्र हृदय में स्पंदित होंगे।
देख तुम्हे जब सम्मुख सुस्मित।
कुछ क्षण हो जाते थे पुलकित।
गाती थी तुम जब-जब सुमधुर।
स्वयं छनक उठते थे नूपुर।
अल्हड़ता तुमसे जग सीखे।
बात-बात में नित नव टीके।
नाम तुम्हारा लेने भर से
अधर स्वतः अब कम्पित होंगे।
एक तुम्हारी रिक्ति खलेगी।
एक तुम्हारी प्रकृति खलेगी।
एक तुम्हारी सुधि पर सुधियाँ।
जाने कब तक छीनें निंदियाँ।
एक तुम्हारा रूप सलोना।
एक तुम्हारा मुझमे होना।
ढूँढेंगे! पर न पाने पर,
मानस-तंतु अचंभित होंगे!