गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 26 से 35/पृष्ठ 5
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देखु री सखी! पथिक नख-सिख नीके हैं |
नीले पीले कमल-से कोमल कलेवरनि,
तापस हू बेष किये काम कोटि फीके हैं ||
सुकृत-सनेह-सील-सुषमा-सुख सकेलि,
बिरचे बिरञ्चि किधौं अमिय, अमीके हैं |
रुपकी-सी दामिनी सुभामिनी सोहति सङ्ग,
उमहु रमातें आछे अंग अंग ती के हैं ||
बन-पट कसे कटि, तून-तीर-धनु धरे,
धीर, बीर, पालक कृपालु सबहीके हैं |
पानही न, चरन-सरोजनि चलत मग,
कानन पठाए पितु-मातु कैसे ही के हैं ||
आली अवलोकि लेहु, नयननिके फल येहु,
लाभके सुलाभ, सुखजीवन-से जी के हैं |
धन्य नर-नारि जे निहारि बिनु गाहक हू,
आपने आपने मन मोल बिनु बीके हैं ||
बिबुध बरषि फूल हरषि हिये कहत,
ग्राम-लोग मगन सनेह सिय-पी के हैं |
जोगीजन-अगम दरस पायो पाँवरनि,
प्रमुदित मन सुनि सुरप-सची के हैं ||
प्रीतिके सुबालक-से लालत सुजन मुनि,
मग चारु चरित लषन-राम-सी के हैं |
जोग न बिराग-जाग, तप न तीरथ-त्याग,
एही अनुराग भाग खुले तुलसी के हैं ||