भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 81 से 89/पृष्ठ 9

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(89)
सुनी मैं सखि! मङ्गल चाह सुहाई |
सुभ पत्रिका निषातराजकी आजु भरत पहँ आई ||

कुँवर सो कुसल-छेम अलि! तेहि पल कुलगुर कहँ पहुँचाई |
गुर कृपालु सम्भ्रम पुर घर घर सादर सबहि सुनाई ||

बधि बिराध, सुर-साधु सुखी करि, ऋषि-सिख-आसिष पाई |
कुम्भजु-सिष्य समेत सङ्ग सिय, मुदित चले दोउ भाई ||

बीच बिन्ध्य रेवा सुपास थल बसे हैं परन-गृह छाई |
पन्थ-कथा रघुनाथ पथिककी तुलसिदास सुनि गाई ||