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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 21 से 30 तक/ पृष्ठ 11

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तौलों बलि, आपुही कीबी बिनय समुझि सुधारि |
जौलों हौं सिखि लेउँ बन रिषि-रीति बसि दिन चारि ||

तापसी कहि कहा पठवति नृपनिको मनुहारि |
बहुरि तिहि बिधि आइ कहिहै साधु कोउ हितकारि ||

लषनलाल कृपाल! निपटहि डारिबी न बिसारि |
पालबी सब तापसनि ज्यों राजधरम बिचारि ||

सुनत सीता-बचन मोचत सकल लोचन-बारि |
बालमीकि न सके तुलसी सो सनेह सँभारि ||