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गीतावली सुन्दरकाण्ड पद 41 से 51 तक/पृष्ठ 11

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सिय! धीरज धरिये, राघौ अब ऐहैं |
पवनपूतपै पाइ तिहारी सुधि, सहज कृपालु, बिलम्ब न लैहैं ||

सेन साजि कपि-भालु कालसम कौतुक ही पाथोधि बँधैहैं |
घेरोइपै देखिबो लङ्कगढ़, बिकल जातुधानी पछितैहैं ||

निसिचर-सलभ कृसानु राम सर उड़ि-उड़ि परत जरत जड़ जैहैं |
रावन करि परिवार अगमनो, जमपुर जात बहुत सकुचैहैं ||

तिलक सारि, अपनाय बिभीषन, अभय-बाँह दै अमर बसैहैं |
जय धुनि मुनि, बरसिहैं सुमन सुर, ब्योम बिमान निसान बजैहैं ||

बन्धु समेत प्रानबल्लभ पद परसि सकल परिताप नसैहैं |
राम-बामदिसि देखि तुमहि सब नयनवन्त लोचन-फल पैहैं ||

तुम अति हित चितैहौ नाथ-तनु, बार-बार प्रभु तुमहि चितैहैं |
यह सोभा, सुख-समय बिलोकत काहू तो पलकैं नहिं लैहैं ||

कपिकुल-लखन-सुजस-जय-जानकि सहित कुसल निज नगर सिधैहैं |
प्रेम पुलकि आनन्द मुदित मन तुलसिदास कल कीरति गैहैं ||