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गुलचान्दनी के फूल / लुईज़ा ग्लुक / झरना मालवीय

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वसन्त के अग्रदूत और उम्मीद के प्रतीक घण्टियों के रूपाकार वाले ये सफ़ेद जंगली फूल, जिन्हें अँग्रेज़ी में ’स्नोड्रॉप’ कहते हैं और हिन्दी, उर्दू फ़ारसी में ’गुलचान्दनी’, सर्दियों के ठीक अन्त में ज़मीन पर पड़ी बर्फ़ के नीचे खिलना शुरू हो जाते हैं।

तुम्हें पता है क्या थी मैं, कैसे जिया मैंने? तुम्हें पता है
क्या होती है हताशा-बेबसी; तो फिर
सर्दियों का कोई अर्थ ज़रूर होगा तुम्हारे लिए ।

बचे रह जाने की उम्मीद नहीं थी मुझे,
धरती ने दबा रखा था मुझे । मैंने नहीं की थी उम्मीद
कि फिर से जागूँगी मैं, महसूस करूँगी
धरती की नमी में अपनी देह को
फिर से हरकत करते हुए, याद करूँगी
इतने समय के बाद कि कैसे खिलना है
एकदम आरम्भिक वसन्त की
सर्द रोशनी में —

सहमे हुए, हाँ, पर फिर से तुम्हारे बीच
चीख़कर कहते हुए कि हाँ लगाओ, ख़ुशियों की बाज़ी

सर्द बेधती हवा में नई दुनिया की ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : झरना मालवीय

लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी में पढ़िए
               Louise Glück
                 Snowdrops

Do you know what I was, how I lived? You know
what despair is; then
winter should have meaning for you.

I did not expect to survive,
earth suppressing me. I didn't expect
to waken again, to feel
in damp earth my body
able to respond again, remembering
after so long how to open again
in the cold light
of earliest spring--

afraid, yes, but among you again
crying yes risk joy

in the raw wind of the new world.