भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गॉव के नाम / बिंदु कुमारी
Kavita Kosh से
आपनोॅ गॉव रोॅ बारें मेॅ
लिखै लेली सोची रहलोॅ छी।
गॉव
जेकरा मेॅ सिमटलोॅ छै
होकरोॅ रंग-ढंग
मांय कहै छै
जहाँ जनम हुवेॅ ऊ गॉव रोॅ बारें मेॅ लिखोॅ
आखिर ननिहर छेकौं तोरोॅ
तोरोॅ ददीहर भी गॉव मेॅ
बचपन गुजारलेॅ छोॅ जहाँ
कैहिनेॅ नी ऊ गॉव रॉे बारें मेॅ लिखौ छोॅ
जहाँ पढ़लेॅ-लिखलेॅ छी हम्मेॅ।
अरे ऊ गॉव केना भूलेॅ पारौं
जौनेॅ पहिचान देलेॅ छै
रोजी-रोजगार देलेॅ छै।
यहीं गॉवोॅ सेॅ तेॅ वजूद छै हमरोॅ
मतर कि ससुराल
होकरोॅ बारे मेॅ भी सोचै लेॅ पड़तै
ऊ गॉव भी बुरा नै आरो
ऊ गॉव जे हमरा बेहद पसंद छै
आपनोॅ चहल-पहल रोॅ वजह सेॅ
एक अदद गॉव खोजबोॅ बड्डी मुश्किल छै
लिखै लेली-
कौनेॅ कहै छै लोग होय छै यायावर
कहियोॅ-कहियोॅ शब्द, विचार केॅ भी
होय लेॅ पड़ै छै
दर-ब-दर।