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घर का धुआं / निशान्त
Kavita Kosh से
सामने एक घर में
उठ रहा है धुआं
घरवालों की
आँखों और सांसो के लिए
बुरा ही सही
मुझे तो लग रहा है
बड़ा भला
धुआं उठ रहा है
तो लगता है
घर में कुछ रंध रहा है
दाल-भात
उत्सव लिए कोई पकवान
या पशुओं का चाटा-बांटा
बड़े घरों में कहाँ रहा अब धुआं
उनकी खुशहाली तो प्रकट कर देती
उनकी चमक-दमक ही
गरीब घरों की तो अब भी
धड़कन है धुआं।