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घुट घुट के जिया अगर तो जीना क्या है / रमेश तन्हा

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घुट घुट के जिया अगर तो जीना क्या है
पतवार न हो जब तो सफ़ीना क्या है
आलामो-मसाइब से ओ डरने वाले
उम्मीद पे दिन काट, महीना क्या है?