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चलो ये तो सलीका है बुरे को मत बुरा कहिए / अज़ीज़ आज़ाद
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चलो ये तो सलीका है बुरे को मत बुरा कहिए
मगर उनकी तो ये ज़िद है हमें तो अब ख़ुदा कहिए
सलीकेमन्द लोगों पे यूँ ओछे वार करना भी
सरासर बदतमीज़ी है इसे मत हौसला कहिए
तुम्हारे दम पै जीते हम तो यारों कब के मर जाते
अगर ज़िंदा हैं क़िस्मत से बुजुर्गों की दुआ कहिए
हमारा नाम शामिल है वतन के जाँनिसारों<ref>जान छिड़कने वाले</ref> में
मगर यूँ तंगनज़री<ref>संकीर्ण-दृष्टि</ref> से हमें मत बेवफ़ा कहिए
तुम्हीं पे नाज था हमको वतन के मो’तबर<ref>प्रतिष्ठित</ref> लोगों
चमन वीरान-सा क्यूँ है गुलों को क्या हुआ कहिए
किसी की जान ले लेना तो इनका शौक है ‘आज़ाद’
जिसे तुम क़त्ल कहते हो उसे इनकी अदा कहिए
शब्दार्थ
<references/>