चालाक लोग / हरिऔध
जी चुरायें, करें न हित जी से।
जाति को क्यों जवाब दें सूखे।
नाम पाकर नमकहराम न हों।
नाम बेंचें न नाम के भूखे।
जो हितू बन बना बना बातें।
जाति-हित के लिए गये बीछे।
वे करें हित न तो अहित न करें।
हों न बदनाम नाम के पीछे।
वह रसातल क्यों चला जाता नहीं।
देस - हित जिसकी बतोलों में सना।
जो बिगाड़े बात बनती जाति की।
बात रखने के लिए बातें बना।
क्यों थपेड़े उन्हें नहीं लगते।
जो न थे बन बखेड़िये डरते।
जाति - हित के लिए खड़े हो कर।
जो बखेड़े रहे खड़े करते।
जो भली राह है हमें भूली।
तो बुरे पंथ में न पग देवें।
बन लुटेरे न जाति को लूटें।
कर ठगी जाति को न ठग देवें।
कर दिखायें उसे कहें जो हम।
जीभ मुँह में कभी नहीं दो हो।
है बुरी बात ढोंग बहुरंगी।
देस - हित - रंग में रँगी जो हो।
क्यों हमारी कपट - भरी करनी।
जाति - सिर के लिए पसेरी हो।
देस - हित के लिए चले मचले।
चाल भूचाल सी न मेरी हो।