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चिरागाँ करो ख़्वाब / नीना कुमार
Kavita Kosh से
आओ शम्मा बुझा दो, चिरागाँ करो ख़्वाब
आओ के धुआँ है सब और इशारे बेहिसाब
के एक तस्वीर के त'आकुब<ref>पीछा करना</ref> में फिरें शब् भर
आओ के रह जाए ना सब नक्श-बर-आब<ref>अस्थायी</ref>
अभी धुन्धले से नज़ारों की ताबीर<ref>सपनों का स्पष्टीकरण</ref> है बाक़ी
आओ के फिर खोजें कुछ सवालों के जवाब
गिरफ्तार हैं साए, एक बज़्म-ए-तसव्वुर<ref>कल्पनाओं की सभा</ref> में
आओ, ज़रा जाने के, ये हकीक़त हैं या सराब<ref>मृगमरीचिका; भ्रम</ref>
सुकूत-ए-रात<ref>रात की चुप्पी</ref> में क्या मंज़र है, चलो खोजें
आ जाओ के ये रात भी हो जाए ना बे-आब<ref>कान्ति विहीन</ref>
क्या जले है, करे रोशन, करे यूँ ख़्वाब, आबाद,
कुछ तो है जो सर-ए-शब्<ref>सारी रात</ref> , करे 'नीना', बेताब
शब्दार्थ
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