छब्बीस जनवरी है बड़ा दिन महान है
ख़ुशियां मना रहा मिरा हिन्दोस्तान है।
देखी अनेकता में यहां हम ने एकता
जमहूरियत की अपनी अनोखी ही शान है।
हिन्दू हो कोई सिख हो मुसिलमान हो कोई
वतने-अज़ीज़ सब का ये हिन्दोस्तान है।
करता है जो बहिश्त की भी माँद आबो-ताब
हिन्दोस्तान है मिरा हिन्दोस्तान है।
फिर 'कारगल` में आज बड़ी आन बान से
लहरा रहा हमारा तिरंगा निशान है।
जो साईचिन की सर्द हवाओं में हैं मक़ीम
क्या देश वासियों तुम्हें उन का भी ध्यान है।
फिर क्यों न सोना उगलें वो अलवेली खेतियां
जिन में पसीना अपना बहाता किसान है।
'रहबर` उसे सलाम करें मिल के हम सभी
सरहद पे सीना ताने खड़ा जो जवान है।