तुम हो मोती और जवाहर
तुममें सुभाष का पानी।
तुम गॉंधी के नूतन स्वरुप
तुम हो नवयुग की वाणी।
तुम राष्ट्र-जलधि के कर्णधार
तुम जीवन-प्राण हमारे
भारत के भावी सूत्रधार
तव गुण हैं न्यारे-न्यारे।
युग से ध्वस्त धरा जीवन का
तुम नव निर्माण करो हे!
चेतना-हीन जीवित मृतकों में
तुम नूतन प्राण भरो है!
तुमको है लेनी होड़ आज
अणु-अश्वों से हे प्यारे!
बन जाना है नूतन शंकर
पीकर हालाहल सारे।
तुम जाति-वर्ग-बंधन विहीन
तव कर्म-क्षेत्र व्यापक है।
संकीर्ण परिधि से ऊर्ध्व सतत
मानवता का मापक है।