छायाएँ / ऑस्कर वाइल्ड / अनिल जनविजय
झलक रही थीं सागर में भूरी-सलेटी चित्तियाँ
औ’ उदास बह रही थी वहाँ, धीमी-सुस्त हवा
चाँद उड़ रहा था, जैसे पतझर की सूखी पत्तियाँ
लहरें उठ रही तूफ़ानी, खाड़ी में कर रहीं बलवा
मलिन रेत पर पड़ी हुई थी, एक काली नाव अकेली
बैठा था उस नाव में एक लापरवाह नाविक लड़का
उमग रहा था ख़ुशी से वह, हर्ष कर रहा अठखेली
चेहरे पे उसके, उसका गोरा हाथ झुटपुटे में चमका
जलपाखी मण्डरा रहे थे ऊपर, चीख़ रहे थे कें...कें...
मलिन ऊँची घास उगी थी, सागर के कूल-कगारे
गुजर रहा था एक युवा कमेरा, उस जगह से बेखटके
छायाकृति-सी झलक रही थी, वह जगह, सुबह-सकारे।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
Les Silhouettes
The sea is flecked with bars of grey,
The dull dead wind is out of tune,
And like a withered leaf the moon
Is blown across the stormy bay.
Etched clear upon the pallid sand
Lies the black boat: a sailor boy
Clambers aboard in careless joy
With laughing face and gleaming hand.
And overhead the curlews cry,
Where through the dusky upland grass
The young brown-throated reapers pass,
Like silhouettes against the sky.