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छोड़लाँ हम्में घर-परिवार, सतगुरु अइलाँ तोहरे द्वार / ब्रजेश दास

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छोड़लाँ हम्में घर-परिवार, सतगुरु अइलाँ तोहरे द्वार।
राखो शरण लगाय, यहि दुखिया के॥टेक॥
जुल्मी बहै माया-धार, कैसें पैबै एकरो पार।
राखो माया सें बचाय, यहि दुखिया के॥1॥
करभौं सेवा दिन-रात काटभौं तोहरो नैं कोय बात।
राखो सेवक बनाय, यहि दुखिया के॥2॥
हम्में मूरख गँवार, हमरो जीवन छै बेकार।
देहो जीवन बनाय, यहि दुखिया के॥3॥
करलाँ कहियो नैं सत्संग, रहिलाँ दुर्जन के नित संग।
आबे देहो भगती-ज्ञान, यहि दुखिया के॥4॥
बिनती करै छै ‘ब्रजेश’, सुनो सतगुरु तों सर्वेश।
देहो आतम रूप लखाय, यहि दुखिया के॥5॥