जज़्बों की गिरह खोल रही हो जैसे
अल्फ़ाज़ में रस घोल रही हो जैसे
अब शेर जो लिखता हूँ तो यूँ लगता है
तुम पास खड़ी बोल रही हो जैसे
जज़्बों की गिरह खोल रही हो जैसे
अल्फ़ाज़ में रस घोल रही हो जैसे
अब शेर जो लिखता हूँ तो यूँ लगता है
तुम पास खड़ी बोल रही हो जैसे