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ज़िन्दगी मोतियों की ढलकती लड़ी / मख़दूम मोहिउद्दीन

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ज़िंदगी मोतियों की ढलकती लड़ी, ज़िंदगी रंगे-गुल का बयाँ दोस्तो
गाह<ref>कभी</ref> रोती हुई, गाह हँसती हुई, मेरी आँखें हैं अफ़सानाख़्वाँ<ref>कथा कहने वाली</ref> दोस्तो ।

है उसी के जमाले नज़र<ref>दृष्टि का सौन्दर्य</ref> का असर, ज़िंदगी ज़िंदगी है सफ़र है सफ़र
साया-ए-शाख़े गुल, शाख़े गुल बन गया, बन गया अब्र<ref>बादल</ref>, अब्रेरवाँ<ref>बहता बादल</ref> दोस्तो ।

इक महकती-बहकती हुई रात है, लड़खड़ाती निगाहों की सौग़ात है
पंखुड़ी की ज़बाँ, फूल की दास्ताँ, उसके होठों की परछाईयाँ दोस्तो ।

कैसे तय होगी ये मंज़िले शामे ग़म, किस तरह से हो दिल की कहानी रक़म<ref>लिखी जाए</ref>
इक हथेली में दिल, इक हथेली में जाँ, अब कहाँ का ये सूद-ओ-ज़ियाँ<ref>लाभ और हानि</ref> दोस्तो ।

दोस्तो एक दो जाम की बात है, दोस्तो एक दो गाम की बात है
हाँ उसी के दरो बाम की बात है, बढ़ न जाए कहीं दूरियाँ दोस्तो ।

सुन रहा हूँ हवादिस<ref>दुर्घटना</ref> की आवाज़ को, पा रहा हूँ ज़माने के हर राज़ को
दोस्तो उठ रहा है दिलों से धुआँ, आँख लेने लगी हिचकियाँ दोस्तो ।

शब्दार्थ
<references/>