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जैसी करनी वैसी भरनी / संजीव 'शशि'
Kavita Kosh से
टूट गये सारे सपने बस,
इक मोबाइल कॉल पर।
बेटा बोले छोड़ रहा मैं,
तुम्हें तुम्हारे हाल पर।।
कितने सारे सपने लेकर,
दूर देश मैं आया।
बदल गया है सारा जीवन,
जो चाहा वह पाया।
बँगलों में रहने का आदी,
रह न सकूँगा चॉल पर।
नाइट क्लब में कटतीं रातें,
गाड़ी में मैं घूमूँ।
पी कर वाइन खाकर मुर्गा,
डांस फ्लोर पर झूमूँ।
नहीं आ सकूँगा फिर वापस,
जीने रोटी-दाल पर।
पाँच अजन्मी बेटी खोयीं,
इस बेटे की खातिर।
उस करनी का आज पिता को,
दण्ड मिल गया आखिर।
नाच रहे नयनों में आँसू,
पीड़ा की सुर ताल पर।