भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज्ञान घटे ठग चोर की सँगति मान घटे पर गेह के जाये / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज्ञान घटे ठग चोर की सँगति मान घटे पर गेह के जाये ।
पाप घटे कछु पुन्य किये अरु रोग घटे कछु औषध खाये ।
प्रीति घटे कछु माँगन तें अरु नीर घटे रितु ग्रीषम आये ।
नारि प्रसंग ते जोर घटे जम त्रास घटे हरि के गुन गाये ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।