Last modified on 24 अप्रैल 2019, at 13:19

टपकती आँखें / बाल गंगाधर 'बागी'

भूख के मारे उनकी आंखें टपकती हैं
जिन्हें गुर्बत में रोटी भी नहीं मिलती हैं
ये सूरज गुमान करना अपने ऊपर
शाम होने पर तेरी औकात पता चलती है
अंधेरे में बस तेरा भी नहीं चलता
कुछ ऐसे लोगों की, जिन्दगी ढलती है
लोग हवा को रोकने की फिराक में हैं
जो चिंगारी को आग में बदलती है
दिल के दीवार को सरहद न बनने देना
दोस्ती जहाँ पर दुश्मनी में ढलती है