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ठहराव / मुदित श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मैं ठहर जाऊँगा किसी दिन,
वैसे ही जैसे ओस
घास पर ठहर जाती है,
भले ही थोड़ी देर बाद
भाप बन जाऊँ,
भाप में ठहरा रहूँगा कुछ देर, हवा के साथ
उड़ती हुई हवा के साथ
ठहरा हुआ उड़ूँगा,
बूँद बन कर बादल मैं ठहरूँगा फिर
बारिश बनकर गिरूँगा उसमें ठहरा हुआ,
पोखरों में ठहरा रहूँगा कुछ दिन,
कोई प्यासी चिड़िया थोड़ा ठहर कर
मुझे पी लेगी!