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तबला / विवेक निराला
Kavita Kosh से
किसी की खाल है
जो खींच कर मढ़ दी गई है
मढ़ी हुई है मृतक
की जीवन्त भाषा।
मृतक के परिजनों
का विलाप कस गया है
इस खाल के साथ।
वादक की फूँक से नहीं
खाल के मालिक की
आख़िरी साँस से
बज रही है वह बाँसुरी
जो सँगत पर है।
धा-धा-धिन-धा
और तिरकिट
के पीछे
एक विषादी स्वर है।