तुम्हारी कहानी तुम्हीं को सुनाने ।
मैं आया हूँ ले कर ये ग़ज़लें-तराने ।
वो जब भी लगे हैं वतन को बचाने,
लगे घर जलाने, लगे घर जलाने ।
जो क़तरा भी बनने के क़ाबिल नहीं है,
चले हो उसे क्यों समन्दर बनाने ।
मुखौटे तो क्या वे बदलते हैं चेहरे,
हक़ीक़त है ’बल्ली’ नहीं हैं फ़साने ।