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तेरह भजन (ईश्वर का सायंकालीन गीत) / बैर्तोल्त ब्रेष्त / नीलाभ

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जब शाम की धुन्ध भरी नीली हवा परमपिता ईश्वर को जगाती है
वह देखता है अपने ऊपर तने आकाश को निरवर्ण होते और
आनन्दित होता है इस पर। फिर सृष्टि का महान कीर्तन
तरोताज़ा करता है उसक कानों को और आहलाद से भर देता है उसे :
डूबने के कगार पर बाढ़ग्रस्त वनों की चीख़
लोगों और साज-सामान के बेपनाह बोझ से दबे
पुराने, धूसर मकानों की कराह।
जिनकी ताक़त छीन ली गई है
उन चुके हुए खेतों की हलक़-चीरती खाँसी।
धरती पर प्रागैतिहासिक हाथी की कठिन और आनन्द-भरी ज़िन्दगी के
अन्त को चिह्नित करने वाली पेट की विराट गड़गड़ाहट।
महापुरुषों की माताओं की चिन्तातुर प्रार्थनाएँ।
बर्फ़ीले एकान्त में आमोद-प्रमोद करते श्वेत हिमालय के
दहाड़ते हिमनद ।
और बैर्तोल्त ब्रेष्त की वेदना जिसके दिन ठीक नहीं गुज़र रहे
और इसी के साथ:
वनों में बढ़ते हुए पानी के पगलाए गीत।
फ़र्श के पुराने तख़्तों पर झूलते, नीन्द में डूबे लोगों की धीमी सांसें।
अनाज के खेतों की हर्ष भरी बुदबुदाहट, अन्तहीन प्रार्थनाओं मे अम्बार लगाती हुई
महापुरुषों के महान भजन ।
और बैर्तोल्त ब्रेष्त के शानदार गीत, जिसके दिन ठीक नहीं गुज़र रहे

अँग्रेज़ी से अनुवाद : नीलाभ