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दरख़्त / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा

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अलग अलग समय में
खड़े हैं वे बरसों से
अलग अग जगह

घिरती हुई रातों में
होती हुई सुबहों में

दुपहरियों में जलते हुए
वे खड़े हैं चुपचाप
हमारे जीने के
सकल्प की तरह-

जीवन में
गहरे तक धँसे।