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दाल-बाफले / गीत चतुर्वेदी

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उपलों में भुन रहे हैं बाफले
मैं इंतज़ार कर रहा हूँ
मेरी ज़िंदगी में आया सबसे बूढ़ा आदमी
कैरोयों को बार-बार टोहता था
वह बच्ची बार-बार किचन में आती है
जिसने थोड़ी देर पहले ही ली थी डकार
मालवा में मेरे पैरों के निशान मिट गए हैं
बेज़ार चटोरों को मेरी याद भी नहीं आई होगी

बाफलों को तोड़ चूरा बना दाल में बिखेर खाना था
मैं हाथों को रगड़ता हूँ और गर्म में फूँक मारने
का अभ्यास करता हूँ
कुएँ के पीछे जाकर उपलों को पहचान आना चाहता हूँ
ये राजमार्ग है भटकते हुए दरवेशों पर प्रतिबंध है
दाएँ-बाएँ नहीं सीधे देखना है
यहाँ-वहाँ देख लेने पर संवेदनाएँ जाग जाती हैं
और आगे के रास्ते बंद हो जाते हैं ठीक उसी क्षण
बेवकूफ़ ऑफ़िर्यस पीछे मुड़ कर देखेगा
और हर बार क़िस्मत पर रोएगा

दाल बन जाने की ख़बर पहले से थी
बाफलों को धीरे-धीरे पकना था
ये दोस्ती बड़ी महँगी चीज़ है
जो आग में घुसे बाफले
अभी तक लौटकर नहीं आए