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दिल के घर महकल / जयराम सिंह
Kavita Kosh से
हौले हौले हवा चलल तन सिहरल मन सहकल रे।
फूल खिलल हमरे दुआर पर दिल के घर महकल रे॥
(1)
गुदगुदाल दिल पढ़ के पांती
पा प्रिये के संदेसा
युग युग से सिहाल मनुआ के, आज मिटल अंदेसा
सूखल बगिया में बसंत अइलै
कोयल कुहकल रे
फूल खिलल ... सहकल रे।
(2)
फर फर केस उड़े मुंह पर,
जेसे गुलाब पर भौंरा,
हरदम करैत रहे छेड़खानी,
कामदेव के छौरा,
रतिया भेल जुआन जुआनी चंदा के छिटकल रे।
फूल खिलल ... सहकल रे।
(3)
हरियर कुच कुच पात बिरिछ के,
लदल फूल से डंधुरी,
दिन गिनते-गिनते थकगेलै,
हमर हाथ के अंगुरी,
जने-जने हम आँख निरैनू,
तोहरे रूप लगल रे॥
फूल खिलल ... दुआर पर
दिल के ... महकल रे।