Last modified on 11 जनवरी 2009, at 09:01

दिल तो पत्थर हो गया धड़कनें लाएँ कहाँ से / दीप्ति मिश्र

दिल तो पत्थर हो गया, धड़कनें लाएँ कहाँ से
वक़्त हमको ले गया है, लौट के आएँ कहाँ से

एक खिलौना है ये दुनिया और बचपन खो गया है
इस खिलौने से, भला, अब दिल को बहलाएँ कहाँ से

देखते हो उतना, बस, ये आँख जितना देखती है
रुह की बातें, भला, तुमको समझ आएँ कहाँ से

है फ़कत झूठे भुलावे, ये जहाँ, ये ज़िन्दगानी
जानकर ये सच, भला,अब चैन हम पाएँ कहाँ से

तुमको साहिल की तमन्ना, हमको मोती ढूँढ़ने हैं
अब सफ़र में हमसफ़र हम, बनके रह पाएँ कहाँ से