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धरा के कण-कण सजत हे / सिलसिला / रणजीत दुधु

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अममा के डाली पर कोयलिया गा रहल गजल हे।
तोर स्वागत में ऋतुराज धरा के कण-कण सजल हे।

बुढ़-बुढ़ गाछी भी पहिरलक नाया-नाया पत्ता,
जाड़ा डर के मारे भागल जइसे बदलत सत्ता,
हवा के हर झोंका में फूल के महँक भरल हे
तोर स्वागत में ऋतुराज धरा के कण-कण सजल हे।

मातल दल से भँउरा सभे छेड़खानी करे कली से,
रह-रह गोरिया डेवढ़ी निहारे पियवा अयथिन गली से,
अममा के डाली-डाली मंजर लदला से झुकल हे
तोर स्वागत में ऋतुराज धरा के कण-कण सजल हे।

राहड़ फुलयलय तीसी फुलयलय आठ फुलयलय मसूरी,
बाँस-नरकटिया संग मिलके हावा बजा रहल हे बँसुरी,
सरसों पियरी चुनरिया पेन्ह के दुलहन बनल हे
तोर स्वागत में ऋतुराज धरा के कण-कण सजल हे।