धूप: पेड़ और रोटी की खुशबू / कुमार कृष्ण
मेरे घर के अन्दर
धूप अब नहीं आती
उसे रोक लिया है बड़ी मजबूती से
बगल में खड़े पेड़ों ने।
प्रतिदिन करता हूँ मैं नाटक
लकड़ियों की आग से गरमाने का
लकड़ियाँ -जो चुराकर लाते हैं
मेरे बच्चे
मेरे देश में पेड़ों का काटना
अपराध है।
धूप मेरे घर की समृद्धि है
पेड़ देश की समृद्धि
पेड़ के साथ जन्म से लेकर
मेरा एक घनिष्ठ सम्बन्ध है।
पेड़ पैदा होने से लेकर मरने तक
जिस्म के जलने की
जिन्दा शहादत है
पेड़ भागती हुई ज़मीन को पकड़ने वाली
बाँहों का नाम है
पेड़ जंगल में भटकी
रोटी की खुशबू है
मेरी माँ ने
पेड़ों को तोड़ने की कला
मुझे सिखा दी थी बचपन में
जिसे मैंने अपने बच्चों को सिखाया
मेरे बच्चे
लकड़ियाँ चुराने वाले गिरोह में
शामिल हैं।
मैंने बहुत बार
जंगल जलने के साथ
ज़मीन को जलते देखा है
जिसकी गन्ध मेरे घर में
अब नहीं आती
मेरे घर में आती है गन्ध
बगल में खड़े पेड़ों की
बार-बार, बार-बार
जो जंगल में भटकी
रोटी की खुशबू है।