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धूवेँ का जंगल / ईश्वरवल्लभ / सुमन पोखरेल

ऊपर आसमान को देखना है,
क्षितिज को छूना है।

किसी को एक फूल देना है,
आसपास कोई है या नहीं!
यदि कोई है तो उसे बुलाना है।

फिर कोई लहर या लश्कर बनाकर दूर तक पहुँचना है।
शाम का रक्तिम सूरज
खो गया शायद कहीं,
सुबह का भोर भी दिखाई नहीं दिया,
नीचे जाने का रास्ता भी नहीं है।

कहाँ गए वे बस्तियाँ?
कहाँ गए वे रिश्तेदार?

इसी धुएँ के जंगल में सबको ढूँढना है।
०००

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धूवाँको जङ्गल / ईश्वरवल्लभ