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न भूख न प्यास गयी / सर्वत एम जमाल
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न भूख प्यास गयी
न अपनी आस गयी
पहाड़ पिघले कब
नदी उदास गयी
थमी थी खामोशी
रचा के रास गयी
मिला शराफत को
नया लिबास, गयी
ये मेरा लहजा है ?
कहाँ मिठास गयी
लिबास उग तो गए
मगर कपास गयी