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नंद-नँदन श्रीकृष्ण एक ही हैं / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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  (राग भैरवी-ताल कहरवा)

 नंद-नँदन श्रीकृष्ण एक ही हैं सब रूपों के आधार।
 वे ही सकल रसोंके, वे ही सकल सुखोंके भी आधार॥
 चिन्तन उनका सुखमय, सुखमय हैं उनके मंगल-दर्शन।
 अन्ग-स्पर्श परम सुखमय है, उनका सब कुछ ही कर्षन॥
 आत्मरूपमें तन-मनमें नित मिले हु‌ए हैं वे प्रियतम।
 वे ही नित अनुभवमें आते, छटा दिखाते शुचि अनुपम॥
 भरे रहें रस-रूप-सौख्यमय प्रिय वे मम बाह्यस्नयंतर।
 उनकी रतिमें हँसता-रोता, रहे नाचता नित अन्तर॥