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नालए-जाने-ख़स्ता जाँ / अमजद हैदराबादी
Kavita Kosh से
नालए-जाने-ख़स्ता-जाँ<ref>निर्बल शरीरवाले दिल की आहें</ref>, अर्शेबरींपै<ref>ईश्वर के समीप तक</ref> जाये क्यों?
मेरे लिए ज़मीन पर साहबे-अर्श<ref>भगवान</ref> आये क्यों?
नूरे-ज़मीं-ओ-आसमाँ, दीदये-दिल में आये क्यों?
मेरे सियाह-ख़ाने में कोई दिया जलाये क्यों?
ज़ख़्म को घाव क्यों बनाओ? दर्द को और बढ़ाए क्यों?
निसबतेहू<ref>ईश्वर-लीनता</ref> को तोड़ कर कीजिये हाय-हाय क्यों?
बख़्शनेवाला जब मेरा उफ़ूपै<ref>क्षमाशीलता पर</ref> है तुला हुआ?
मुझ-सा गुनहगार फिर जुर्म से बाज़ आये क्यों?
‘अमजदे’-ख़स्ताहाल की पूरी हो क्यों कर आरज़ू।
दिल ही नहीं जब उसके पास, मतलबे-दिल बर आये क्यों?
शब्दार्थ
<references/>