भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पत्ते की शिराएँ / रुस्तम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
पत्ते की
शिराएँ
बढ़ रही थीं।
उनका ताम्बई रंग था।
पत्ते की
शिराएँ
फैल रही थीं।
पत्ता फैल रहा था।
वृक्ष ने
पूरी पृथ्वी को
ढाँप लिया था।